बुधवार, 21 जुलाई 2010

मंगल एवं शुक्र युति


आज तक गुरुसत्ता अध्यात्मिक केंद्र में स्वामी अनुराज के सुक्ष्म सरक्षण में कुण्डलिनी शक्ति ज्ञान योग पर कई विचारधाराओ और वर्तमान जीवन में उसे किस तरह उतारा जाए पर चर्चा होती रही है आज गृह साधना और मानव जीवन में ग्रहों का प्रभाव पर चर्चा करना चाहता हूँ वर्तमान युग विज्ञानं का युग है इस युग में अध्यात्म ,वेद पुराण की बाते कहना या समझाना उतना ही कठिन है जितना की अंधे को दीप दिखाना यह युग मशीन का है यन्त्र का है जहा तंत्रों और मंत्रो की परिभाषा को समझाना कठिन हैआज यदि पृथ्वी का अपना अस्तित्व है तो अन्य ग्रहों का भी अपना प्रभाव है जो परिभ्रमण पथ पर सूर्य के चारो और परिक्रमा कर रहे है प्रत्येकg ग्रहों की अपनी अलग अलगh प्रकृतिh और गुणागुणv है जो प्रकृति के साथ साथ सजीव व निर्जीव हर वास्तु पर अपना प्रभाव रखे हुए है यहाँ तक वनस्पति पर भी ग्रहों का प्रभाव सर्वाधिक होता है जो मौसम के रूप में पर्यावर्णीय प्रभावों के संतुलन एवं असंतुलन का कारण हैआज मै आप लोगो के मध्य मंगल एवं शुक्र ग्रह की युति पर अपने विचार व्यक्त कर रहा हूँ हमारे शास्त्रों में मंगल एवं शुक्र ग्रह के बारे में कहा गया है :-"पप्रपन्चर्सिको धुर्तः सभौमे भ्रुगो "अर्थात प्रपंच रसिक अर्थात मायावी ,सत्य -असत्य का प्रपंच करने में रत व्यक्तित्व से है अर्थात इन दोनों की युति हमेशा व्यक्ति को कष्ट में ले आता है प्रायः इन दोनों ग्रहों की युति को कुंडली में सही नहीं माना जातामंगल अग्नि ,क्रूरता ,उत्तेजना ,संघर्ष ,का स्वामी है वाही शुक्र जल, प्रेम ,सौन्दर्य प्रियता ,कामुकता ,सरसताका घोतक है जब यह विपरीत प्रकृति आपस में मेल खाती है तब जीवन में काम -क्रौध की अधिकता कटुता ,विग्रह ,असमज्स्यता जन्म लेने लग जाता हैवर्तमान समाया मै यही विसंगतिय पुरे जगत में व्याप्त है आज यही प्रवुत्ति घर घर में अपने पर -दोष की आवृति को बाधा रहे हैमंगल एवं शुक्र ग्रहों की युति को प्रायः स्त्रियों की कुंडली में दोषपूर्ण मन गया है कारन निज सूत एवं गर्भस्थान को यह प्रभावित करता है इन ग्रहों के कारन दांपत्य जीवन भी प्रभावित होता है प्रायः हम देखते है पुरुष एवं स्त्री की कुंडली में अविवाहित योग ,परित्यक्ता योग,वैधव्य व् विधुर योग ,संतानहीनता के साथ साथ पारिवारिक शांति का भी आभाव रहता है कई बार चारित्रिक हनन का शिकार इन्ही ग्रहों के दोष के चलते देखा गया है इस संसार में रज एवं सत के मेल से ही नवनिर्माण की अर्थात सृजन की कल्पना को सर्थाकत मिली है जो मंगल एवं शुक्र के ही घोतक है शुभ स्थिति में यही ग्रह संतान उत्पत्ति में सहायक होते है विपरीत स्थिति में यही ग्रह संतानहीनता को जन्म देते है

बुधवार, 14 जुलाई 2010

कामख्या


नमस्ते देवी अधिष्ठात्री ,नमस्ते त्रिपुर सुंदरी

नमस्ते कामरूपी कामख्या नमस्ते जगात्कारिणी

मूलाधारे कुण्डलिनी रूप विराजी , माँ सुंदरी की जय कहे सब नर नारी

स्वयं सिद्धा परमेश्वरी तुम , शिव नाभि से निकली सवारी

जो दल छू ले माँ अष्टभुजाधारिणी , सहस्त्र दल पुलकित हो जग की प्यारी

अध्काले तवं देवी माँ भगवती कामख्या ये जग तुममे ,माँ कुण्डलिनी शक्ति की संचारी

(ॐ क्रीम क्रीम कामरूप कामख्याये कुण्डलिनी प्रस्तार्निया क्रीम क्रीम ॐ )